जन्मकुंडली में शुक्र विवाह, पत्नी व वीर्य का कारक है। शुक्र काले घुंघराले बाल, सुन्दर देह, सुन्दर आँखें मधुर वाणी, युवा, समान अंगों वाला है। शुक्र ग्रह को भी मंत्री-मंडल में मंत्री पद प्राप्त है। शुक्र ग्रह वर्ण, स्त्री ग्रह, जलीय तत्त्व तथा राजसिक ग्रह है। शुक नैसर्गिक शुभ ग्रह है। शुक की वात व कफ प्रकृति है। शुक्र का निवास स्थान शयन कक्ष है। शुक्र को स्वाद में खटटे स्वाद पर अधिकार प्राप्त है। शुक्र दिवा बली तथा शुक्लपक्ष बली होता है। यह चतुर्थ भाव में दिग्बली होता है। आग्नेय कोण तथा बसन्त ऋतु का स्वामी है। शुक्र की स्वराशियाँ वृष व तुला है। तुला राशि में 0° से 15° तक मूत्र त्रिकोण का फल प्रदान करता है। 27″ पर शुक मीन राशि में स्थित हो तो परम उच्च व कन्या राशि में 27 पर पद्म नीच हो जाता है। भरणी, पूर्वाफाल्गुनी व पूर्वाषाढा नक्षत्रों का स्वामी है। शुक की दशा 20 वर्ष होती है। शुक्र के मित्र शनि व बुध है तथा शत्रु सूर्य, चंद्रमा तथा मंगल व गुरू सम है शुक्र का रत्न हीरा है। यह बुध के साथ मिलकर लक्ष्मी-नारायण योग बनाता है।
शुक्र ग्रह ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ग्रह विवाह, और पत्नी का कारक माना जाता है। शुक्र का वर्ण, स्वरूप और उसका ज्योतिष में स्थान विशेष महत्व रखता है। इस ब्लॉग में हम शुक्र ग्रह के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझेंगे।
अगर आपकी कुंडली में किसी भी तरह का दोष है, तो समाधान के लिए एस्ट्रोएक्सप्लोर से संपर्क करें।
शुक्र ग्रह का स्वरूप और स्वभाव
शुक्र ग्रह की पहचान काले बाल, सुंदर देह, और मधुर वाणी से होती है। यह ग्रह हमेशा युवा और आकर्षक होता है, और इसके सभी अंग समान रूप से सजीव होते हैं। ज्योतिष शास्त्र में, शुक्र को मंत्री मंडल में मंत्री का पद प्राप्त है, जो इसके राजसिक स्वभाव और जलीय तत्त्व के कारण है।
शुक्र का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष के अनुसार, शुक्र एक नैसर्गिक शुभ ग्रह है, जिसका संबंध वात और कफ प्रकृति से है। इसका निवास स्थान शयन कक्ष में माना जाता है, और यह खट्टे स्वाद पर अधिकार रखता है। शुक्र ग्रह दिन के समय और शुक्ल पक्ष में अधिक प्रभावी होता है। यह ग्रह चतुर्थ भाव में स्थित होने पर दिग्बली होता है और आग्नेय कोण तथा बसंत ऋतु का स्वामी है।
शुक्र की राशियाँ और नक्षत्र
शुक्र की स्वराशियाँ वृषभ और तुला हैं। तुला राशि में 0° से 15° तक शुक्र मूत्र त्रिकोण का फल प्रदान करता है, जो ज्योतिष में एक शुभ संकेत माना जाता है। जब शुक्र 27° पर मीन राशि में स्थित होता है, तो इसे परम उच्च अवस्था माना जाता है। दूसरी ओर, कन्या राशि में 27° पर यह पद्म नीच अवस्था में होता है। भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रों का स्वामी भी शुक्र ही है।
शुक्र की दशा और ग्रह मित्र
शुक्र की महादशा 20 वर्षों तक चलती है, जो व्यक्ति के जीवन में विभिन्न प्रकार के परिणाम ला सकती है। इसके मित्र ग्रह शनि और बुध हैं, जबकि शत्रु ग्रहों में सूर्य, चंद्रमा, मंगल, और गुरु आते हैं। शुक्र और बुध के संयोजन से लक्ष्मी-नारायण योग बनता है, जो व्यक्ति के जीवन में धन और समृद्धि लाता है।
शुक्र का रत्न और उपाय
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र का रत्न हीरा माना जाता है। अगर शुक्र कुंडली में अशुभ स्थिति में है, तो हीरा धारण करने से इसके अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है। इसके अलावा, शुक्र की स्थिति को सुधारने के लिए शुक्रवार के दिन व्रत रखना और शुक्र से संबंधित वस्त्र धारण करना भी लाभकारी होता है।
निष्कर्ष
शुक्र ग्रह का ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान है, और इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में विवाह, सौंदर्य, और धन-धान्य पर पड़ता है। शुक्र की स्थिति और दशा को समझकर इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का आकलन किया जा सकता है, जिससे जीवन में बेहतर निर्णय लिए जा सकते हैं।