शनि लम्बा व पतला है। शनि के शरीर का रंग काला है। शनि के अंग बड़े है तथा बाल कठोर / रूखे हैं । शनि के दाँत/ नाखून देखने में भयानक व मोटे हैं। शनि नैसर्गिक अशुभ ग्रह है। शनि विकलांग, वृद्ध, तामसिक, अशुभ, आलसी, शूद्र तथा दुःख व निराशा का प्रतीक ग्रह है। शनि का आधिपत्य, जेल, कूड़ाघर, शमशान व गन्दें स्थानों पर है। शनि का शिशिर ऋतु पर अधिकार है। शनि पश्चिम दिशा का स्वामी है। शनि का कसैले रस पर अधिपत्य हैं। ग्रहों के मंत्रीमंडल में शनि को सेवक का पद प्राप्त हैं। शनि कुंडली में सप्तम भाव में दिग्बली, रात्रिबली तथा कृष्ण पक्ष में बली होता है। शनि की धातु लोहा है। शनि तुला राशि में 20° पर परम उच्च व मेष राशि मे 20 पर परम नीच फल देता हैं। शनि मकर व कुम्भ राशि का स्वामी है। कुम्भ राशि में 0 से 20° तक मूल त्रिकोण के फल प्रदान करता है। शनि पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों का स्वामी है। पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का सम्मट कहा जाता है। शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है। जन्नकालीन चन्द्र से द्वादश भाव में गोचर के समय शनि का प्रवेश होते ही जातक की साढेसाती शुरू हो जाती है तथा जब तक जन्म राशि व जन्म राशि से द्वितीय भाव में शनि गोचर करता है जातक की साढ़े साती रहती है। जन्मकालीन चन्द्र से चतुर्थ भाव व अष्टम भाव में शनि का गोचर शनि की ढैय्या कहलाती है। शनि के मित्र शुक व बुध तथा शत्रु सूर्य, चंद्र व मंगल है। बृहस्पति को शनि सम मानता है। शनि का रत्न नीलम है।
शनि ग्रह को लेकर हमारे समाज में कई धारणाएं हैं। शनि ज्योतिष के अनुसार एक महत्वपूर्ण ग्रह है, जिसका मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं शनि ग्रह के बारे में विस्तार से।
शनि ग्रह का स्वरूप और विशेषताएँ
शनि ग्रह का स्वरूप लम्बा और पतला होता है, और इसका रंग गहरा काला होता है। इसके शरीर के अंग बड़े होते हैं और बाल कठोर और रूखे होते हैं। शनि के दाँत और नाखून मोटे और भयानक दिखते हैं, जो इसे एक विशिष्ट रूप प्रदान करते हैं। शनि नैसर्गिक रूप से एक अशुभ ग्रह माना जाता है और इसे विकलांगता, वृद्धावस्था, तामसिकता, आलस्य, और दुःख का प्रतीक माना जाता है।
शनि का अधिकार क्षेत्र और प्रतीकात्मकता
शनि का आधिपत्य जेल, कूड़ाघर, शमशान, और गंदे स्थानों पर होता है। शनि शिशिर ऋतु का प्रतिनिधित्व करता है और पश्चिम दिशा का स्वामी है। इसके अलावा, यह कसैले रस पर भी अधिकार रखता है। ग्रहों के मंत्रीमंडल में शनि को सेवक का पद प्राप्त होता है।
ज्योतिष में शनि का महत्व
शनि ज्योतिष में सप्तम भाव में दिग्बली, रात्रिबली तथा कृष्ण पक्ष में बलवान होता है। इसका धातु लोहा है और यह तुला राशि में 20° पर परम उच्च तथा मेष राशि में 20° पर परम नीच फल देता है। शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी है, और कुंभ राशि में 0 से 20° तक मूल त्रिकोण का फल प्रदान करता है।
शनि के नक्षत्र और महादशा
शनि पुष्य, अनुराधा, और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों का स्वामी है। पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का सम्मट कहा जाता है। शनि की महादशा 19 वर्षों की होती है, जो एक लंबी अवधि होती है और जीवन में कई बदलाव लाने वाली होती है।
शनि की साढ़े साती और ढैय्या
जन्मकालीन चंद्र से द्वादश भाव में शनि के गोचर के समय साढ़े साती शुरू हो जाती है। यह तब तक रहती है जब तक शनि जन्म राशि और जन्म राशि से द्वितीय भाव में गोचर करता है। इसके अलावा, जन्मकालीन चंद्र से चतुर्थ और अष्टम भाव में शनि का गोचर ढैय्या कहलाता है, जो व्यक्ति के जीवन में विशेष प्रभाव डालता है।
शनि के मित्र और शत्रु ग्रह
शनि के मित्र ग्रह शुक्र और बुध हैं, जबकि सूर्य, चंद्र और मंगल इसके शत्रु माने जाते हैं। बृहस्पति को शनि तटस्थ मानता है। शनि का रत्न नीलम होता है, जो इसके प्रभाव को नियंत्रित करने में सहायक माना जाता है।