यह एक छाया ग्रह है। राहु सर्प का मुख है। यह नीले रंग का लम्बा, दीर्घकाय, कुरूप, कुष्ठ रोगी, कफ्— प्रकृति वाला पापी लेकिन विदवान, झूठी वाणी युक्त ग्रह है। राहु नास्तिक, पाखंडी, धुँऐ के बादल जैसा दिखता है परन्तु वैसा है नहीं। राहु सदैव दूसरों की बुराई यानि परनिन्दा करने वाला है। राहु में दो विशेष में दो विशेष गुण है जो अन्य किसी ग्रह में नही है। पहला अपना फल जरूर देना है इसलिए वह अचानक देता है चाहे शुभ हो या अशुभ फल देता है। शनिवत राहु अर्थात राहु शनि के समान ही फल देता है। राहु मलेच्छ है। राहु स्त्री ग्रह है, नैऋत्य दिशा का स्वामी, रात्रि बली है। राहु वृष राशि में उच्च व धनु राशि में नीच फल देता है। मतान्तर से राहु मिथुन राशि में उच्च व धनु राशि में नीच फल प्रदान करता है। राहु की स्वराशि कन्या व मूल-त्रिकोण राशि कुम्भ है। यह सूर्य, चंद्र, मंगल को शत्रु व बुध, शुक्र, शनि को मित्र तथा गुरू को सम मानता है। राहु आर्द्रा, स्वाति व शतभिषा नक्षत्रों का स्वामी है। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है। राहु का रत्न गोमेद है। राहु व केतु कुंडली में सदा वक्री चलते हैं व परस्पर एक दूसरे से 180° की दूरी पर होते है। राहु, सूर्य ग्रह के साथ मिलकर पूर्ण सूर्य ग्रहण लगाता है व चन्द्र के साथ मिलकर अर्द्ध चन्द्र ग्रहण बनाता है।
राहु ग्रह एक छाया ग्रह है, जो भारतीय ज्योतिष में विशेष स्थान रखता है। इसे सर्प के मुख के रूप में देखा जाता है और इसे नीले रंग का, लम्बा, कुरूप, और कुष्ठ रोगी के रूप में वर्णित किया गया है। राहु को विद्वान, झूठी वाणी वाला, नास्तिक, और पाखंडी भी माना जाता है। धुँए के बादल जैसा दिखने वाला राहु वास्तव में वैसा नहीं होता जैसा दिखता है। यह ग्रह सदैव दूसरों की बुराई करने वाला होता है।
राहु ग्रह की विशेषताएँ
राहु का स्वभाव और गुण
राहु ग्रह में दो अनोखे गुण होते हैं जो इसे अन्य ग्रहों से अलग बनाते हैं। पहला यह कि राहु अपना फल अवश्य देता है, चाहे वह शुभ हो या अशुभ, और दूसरा यह कि यह फल अचानक ही मिलता है। राहु को ‘शनिवत राहु’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि राहु का फल शनि के समान ही होता है। यह ग्रह मलेच्छ, स्त्री ग्रह, और नैऋत्य दिशा का स्वामी होता है।
राहु का राशि और दिशा में प्रभाव
राहु वृषभ राशि में उच्च और धनु राशि में नीच फल देता है। कुछ ज्योतिषीय मतों के अनुसार, राहु मिथुन राशि में उच्च और धनु राशि में नीच फल प्रदान करता है। इसकी स्वराशि कन्या और मूल त्रिकोण राशि कुंभ है। राहु सूर्य, चंद्र, मंगल को शत्रु और बुध, शुक्र, शनि को मित्र तथा गुरु को सम मानता है। यह आर्द्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्रों का स्वामी है।
राहु का ज्योतिषीय महत्व
राहु की महादशा और ग्रहण का प्रभाव
राहु की महादशा 18 वर्षों की होती है। यह गोमेद रत्न से जुड़ा हुआ है, जो इसके प्रभाव को संतुलित करने में सहायक माना जाता है। राहु और केतु दोनों ही ज्योतिषीय कुंडली में हमेशा वक्री चलते हैं और एक दूसरे से 180° की दूरी पर होते हैं। राहु सूर्य के साथ मिलकर पूर्ण सूर्य ग्रहण लगाता है, जबकि चंद्र के साथ मिलकर अर्द्ध चंद्र ग्रहण बनाता है।
राहु का ज्योतिष में स्थान
राहु का ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह अचानक और अप्रत्याशित परिणाम देता है। यह व्यक्ति के जीवन में उलटफेर कर सकता है और इसके प्रभाव से व्यक्ति की सोच, व्यवहार, और निर्णयों में गहरा प्रभाव पड़ सकता है। राहु का सही आकलन और इसके उपायों का पालन करना जीवन में संतुलन लाने के लिए आवश्यक है।
राहु के रहस्यमयी स्वभाव और इसके अप्रत्याशित परिणामों के कारण, यह ग्रह ज्योतिषीय अध्ययन और उपायों में विशेष स्थान रखता है। राहु के बारे में गहन जानकारी प्राप्त कर हम इसके प्रभावों से बचने और इसके लाभकारी पक्षों का उपयोग कर सकते हैं।
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