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मंगल ग्रह: वैदिक ज्योतिष में महत्व और जीवन पर प्रभाव

मंगल ग्रह, वैदिक ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह ग्रह न केवल ब्रह्मांड में बल्कि जातक के जीवन में भी विशेष प्रभाव डालता है। आज हम आपको इस ग्रह के विशेषताओं और इसके जीवन पर प्रभाव के बारे में बताएंगे।

जन्मकुडली में मंगल, जातक के आत्म-विश्वास का कारक होता है। शास्त्रों के अनुसार मंगल युवा, रंग लाल, पित्त प्रधान, तामसिक, क्रूर लेकिन उदार, स्वभाव से उदार, स्वभाव से उग्र, चमकीले बाल, पतली कमर, अग्नि तत्त्व, क्षत्रिय, लाल आँखों वाला पुरुष ग्रह है। मंगल पाप ग्रह है। मंगल कृष्ण पक्ष बली तथा रात्रि बली है। कुंडली में दशम भाव में दिग्बली होता है। स्वाद तीखा है। सोना व ताँबा की धातुएँ है । ग्रहों के मंत्री-मंडल में मंगल सेनापति है। मंगल मकर राशि में 28° पर परम उच्च व कर्क राशि में 28° पर परम नीच होता है। मेष राशि में 0°-12° तक मूल-त्रिकोण व शेष राशि का भी स्वामी है। मृगशिरा, चित्रा व धनिष्ठा नक्षत्रों का स्वामी है। मंगल की महादशा 7 वर्ष की होती है। मंगल के मित्र सूर्य, चंद्र व बृहस्पलि है। बुध को शत्रु मानता है तथा शुक्र, शनि सम है। मंगल का रत्न मूँगा है। मंगल परिवार में भाई-बहन को दर्शाता है। यह राहु के साथ मिलकर अंगारक योग बनाता है। मंगल  के खराब होने पर आत्म-विश्वास में कमी, भाई-बहन को परशानी व दाम्पत्य जीवन में परेशानी होती है।

परिचय:

मंगल ग्रह को ज्योतिष में सेनापति का दर्जा दिया गया है। यह ग्रह लाल रंग का होता है और इसे ऊर्जा, शक्ति, साहस और संघर्ष का प्रतीक माना जाता है। ब्रह्मांड में मंगल  का स्थान चौथा है और यह सूर्य से दूर चौथे स्थान पर स्थित है। इस ग्रह का प्रभाव जातक के जीवन में कई तरीकों से पड़ता है और इसका सीधा संबंध उसकी व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन से होता है।

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मंगल का ज्योतिषीय प्रभाव:

1. मंगल का गुण और स्वभाव:
मंगल अग्नि तत्व से जुड़ा हुआ है और इसे क्षत्रिय ग्रह माना जाता है। यह ग्रह रात्रि और कृष्ण पक्ष में बलवान होता है और कुंडली के दशम भाव में दिग्बली माना जाता है। मंगल का स्वाद तीखा होता है और इसकी धातुएँ सोना और ताँबा मानी जाती हैं। ग्रहों के मंत्री-मंडल में मंगल सेनापति की भूमिका निभाता है।

2. मंगल का राशि और नक्षत्रों पर प्रभाव:
मंगल मकर राशि में 28° पर परम उच्च स्थिति में होता है और कर्क राशि में 28° पर परम नीच होता है। मेष राशि में 0°-12° तक मंगल मूल-त्रिकोण का स्वामी होता है और इसके शेष राशि का भी स्वामी है। मंगल मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्रों का स्वामी होता है। मंगल की महादशा 7 वर्ष की होती है, जिसमें जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे जाते हैं।

मित्र और शत्रु ग्रह:

मंगल के मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र और बृहस्पति होते हैं। ये ग्रह, मंगल के साथ मिलकर जातक के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। बुध को मंगल शत्रु मानता है और शुक्र एवं शनि को सम ग्रह के रूप में देखता है। मंगल का रत्न मूँगा होता है, जिसे धारण करने से जातक को शक्ति और आत्म-विश्वास मिलता है।

जीवन पर प्रभाव:

1. भाई-बहन के संबंधों पर प्रभाव
यह ग्रह भाई-बहन के संबंधों का कारक होता है। यदि कुंडली में इस ग्रह की स्थिति खराब होती है, तो जातक के भाई-बहनों को परेशानी हो सकती है और उनके संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है।

2. दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव
यह  ग्रह के खराब होने पर दाम्पत्य जीवन में समस्याएं आ सकती हैं। इस ग्रह की नकारात्मक स्थिति से पति-पत्नी के बीच अनबन और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

3. अंगारक योग का निर्माण
यह ग्रह राहु के साथ मिलकर अंगारक योग का निर्माण करता है। यह योग जातक के जीवन में कई प्रकार की चुनौतियाँ और समस्याएँ लेकर आता है। इससे आत्म-विश्वास की कमी, मानसिक तनाव और जीवन में अस्थिरता का अनुभव होता है।

यह ग्रह के खराब प्रभावों को दूर करने के लिए मूँगा रत्न धारण करना लाभकारी होता है। इसके अलावा, मंगल ग्रह से जुड़े दान, व्रत और मंत्रों का जाप भी जातक को मंगल के प्रतिकूल प्रभावों से बचा सकता है।

निष्कर्ष: यह ग्रह का जीवन पर गहरा प्रभाव होता है। इसकी शुभ स्थिति जीवन में शक्ति, आत्म-विश्वास और सफलता लाती है, जबकि इसकी नकारात्मक स्थिति से जीवन में कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए, कुंडली में मंगल की स्थिति का सही मूल्यांकन और उचित उपाय करना आवश्यक है।

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